
में बढोतरी जैसी आवश्यकताओं के उपचार हेतु आयुर्वेद में सिर्फ सामान्य जल के प्रयोग द्वारा भी इन स्थितियों के उपचार का वर्णन देखने में आता है। वे सभी जरुरतमंद लोग जो एलोपैथी के मंहगे उपचार से दूर रहते हुए अपनी ऐसी समस्याओं का निराकरण करना चाहें उनकी जानकारी हेतु जल के द्वारा किये जाने वाले रोगों के उपचार की विधि निम्नानुसार है।
किसी भी नीले रंग के कांच की बोतल में जल भरकर व ढक्कन बंद करके उस बोतल को लकडी के किसी पटिये पर रखकर सात दिनों तक सूर्य के प्रकाश (धूप) में रखा जावे और सात दिन के बाद उस सूर्य तापित जल को सुबह के वक्त खाली पेट आधा गिलास मात्रा में लेकर व शेष आधा गिलास उसमें सादा पानी मिलाकर इसका कुछ दिन नियमित सेवन किया जावे तो ऐसे व्यक्ति के शरीर से आलस्य, स्थायी थकावट, मुंह में बार-बार छाले आना और अत्याधिक नींद आने की समस्या दूर हो जाती है ।
इसी विधि से जब हरे रंग के कांच की बोतल में जल भरकर उसे सूर्य के प्रकाश में सात दिन रखा जावे और सुबह के वक्त आधा सादा पानी मिलाकर खाली पेट इसका सेवन कया जावे तो ऐसे व्यक्तियों के शरीर से अत्यधिक चिंता करने की मनोवृत्ति, अनिद्रा, आधेसीसी का सिरदर्द, नाक से खून बहना (नकलोई), आदि समस्याएँ दूर होने के साथ ही इनके नेत्र ज्योति में बढोतरी होती है ।
वहीं जिन लोगों को लकवा, गठिया, पीठ, गर्दन व जोडों के दर्द की शिकायत रहती हो तो ऐसे लोगों की इन समस्याओं का उपचार लाल रंग के कांच की शीशी में भरकर सूर्य के प्रकाश में सात दिन रखे गये पानी को सुबह खाली पेट पीने से हो सकता है ।
यद्यपि वर्तमान प्लास्टिक के बढते प्रचलन ने कांच की शीशियों की उपलब्धता अत्यंत कम कर दी है और रंगीन कांच की बोतलें मिल पाना तो और भी कठिन हो गया है ऐसे में बाजार में मिलने वाले इन्हीं रंगों के जिलेटीन पेपर को रबरबैंड की मदद से सादी सफेद कांच की बोतल पर लगाकर भी यदि धूप में रखा जावे तो जल जनित इस कलरथैरेपी के पूरे लाभ प्राप्त किये जा सकते हैं।
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